प्रतिभा को पहचानें
प्रतिभा को जानना ही सफलता की पहली सीढ़ी है।
यह भी उतना ही सच है कि व्यक्ति सभी कार्य करने में सक्षम नहीं है परंतु किसी भी एक कार्य को वह बड़ी कुशलता से कर सकता है यही प्रतीभा है । यहां अल्बर्ट आइंस्टीन की बात ज्यादा तर्कसंगत जान पड़ती है ।इनके अनुसार "हर व्यक्ति प्रतिभाशाली है लेकिन आप मछली का मूल्यांकन अगर पेड़ पर चढ़ने की उसकी योग्यता से करेंगे तो वह अपनी पूरी जिंदगी इस यक़ीन के साथ जिएगी कि वह मूर्ख है।"
प्रतिभा ईश्वर द्वारा प्रदत्त गुण है जो हर व्यक्ति में किसी न किसी रूप में विद्यमान होता है। कुछ व्यक्ति पूरी जिंदगी उस प्रतिभा को जान ही नहीं पाते तथा दूसरी ओर व्यक्ति भाग्य के अनुसार जो मिला उसे स्वीकार करते रहते हैं। यदि वे सफल होते रहते हैं तो शायद कभी जानने का प्रयास भी नहीं करते कि उनमें क्या खूबी है? परन्तु जैसे ही कोई असफल होता है या किसी मुश्किल दौर में फंसता है। यहां से उसके आत्मविश्लेषण के प्रयास शुरू होते है। जिस प्रकार सोने को तपा कर अधिक से अधिक निखारा जाता है। उसी प्रकार जीवन में जब तक तपीश ना मिले। उसकी प्रतिभा का निखार नहीं आता अर्थात विषम परिस्थितियों में होने पर आत्म विश्लेषण तेजी से करेगा । जब यह आत्म विश्लेषण अत्यधिक गहराई में जाने लगता है तो व्यक्तियों को संसार से नीरसता भी आने लगती है तो वहीं दूसरी ओर यदि आपकी पाने की लालसा प्रबल हो तो आप स्वयं को पहचान कर उसी अनुरूप कार्य करने की कवायद बढ़ा सकते हो।
यह भी सच है की जीवन बिना कर्मों के संभव नहीं है ।काम न करना भी अपने में एक कर्म है ।इसलिए जब व्यक्ति क्या बेहतर कर सकता है इस तथ्य को जान लेता है तब वह सफलता की ओर बढ़ने लगता है।
असफल होने पर,पतन,चोंट लगने के बाद व्यक्ति की सामान्य प्रतिक्रिया यह होती है कि वह स्वयं पर तरस खाने या सहानुभूति में जुटने लगता है। परंतु यही वह दौर है। जिसमें बिना सोचे-विचारे बिना स्वंयं पर तरस खाने के बजाय अगले दौर की तैयारी में जुटना चाहिए।विख्यात मनोवैज्ञानिक अल्बर्ट बेंडुरा के अनुसार हम हार के बाद जीत की कोशिश से अधिक खुद पर तरस खाने में व्यस्त रहते हैं।यह दौर जैसे ही थोड़ा लंबा खिंचता है, हमारे अवचेतन में ये चिजें पैठ कर जाती है।
हार के बाद स्वयं को कमतर आंकने से बचना चाहिए । यहां हमें सदैव एक बात पर ध्यान रखना चाहिए कि जीवन सुख-दुख ,अच्छे-बुरे सभी से मिलकर बना है। जिस प्रकार सूर्य के सामने पृथ्वी का कुछ हिस्सा ही प्रकाशमान होता है शेष नहीं एक निश्चित अवधि के उपरांत दूसरा भाग प्रकाशमान होता है। उसी प्रकार सफलता-असफलता हार- जीत हमारे जीवन की प्राप्तियां है ,जो निश्चित अवधि में हमें प्राप्त होती है ।जब हम असफल होते हैं। इसका मतलब यह नहीं है कि आपको कुछ नहीं आता है या आप में टैलेंट नहीं है ।इस असफलता में अनुभव प्राप्त हुआ है। यह महत्वपूर्ण है, पर साथ में पीड़ा भी मिली है।जो व्यक्ति आपको स्वयं पर हावी नहीं होने देते तथा स्वयं की प्रतिभा को जानकर पुनः प्रयास करते हैं सफल निश्चित होते हैं।
ईश्वर सब का कल्याण करें।।

Yeh Pratibha kaun hai ? Ise kyon pehchanana jaruri hai . Regards.
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