स्वयं को जानो

स्वयं को जानो



      कभी-कभी ऐसा होता है  कि हमारा जीवन रुक-सा गया है या कई लोगों का जीवन एक पड़ाव पर आकर लक्ष्य विहीन हो गया तथा  कुछ को ऐसा लगता है कि वे जीवन जी नहीं रहे होते वरन काट रहे होते हैं।तो कई व्यक्ति जीवन को समाप्त करने जैसे पड़ाव पर आ  पहुंचते हैं कुछ व्यक्ति अपने कर्तव्य को पूरा करते-करते स्वयं जीना भूल जाते हैं तथा बदले में पाने वाले सम्मान से भी वंचित महसूस करते हैं।

         जीवन दुखों ,खुशियों ,इच्छाओं के जालों से निर्मित है। हर जाल एक संबंध को निर्मित करता है  और हर संबंध दूसरे संबंध से प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष रूप से जुड़ा होता है।एक का असर दूसरे पर ठीक उसी प्रकार पड़ता है जैसे तरंग का अपने उद्भव से लेकर समापन तक गतिमान होकर एक निश्चित अवधि भाग को सक्रिय करना होता है।

             मस्तिष्क तथा मन मिलकर स्वयं  की छवि को गढ़ने लगते हैं ।आप क्या है?और क्या दिखाना चाहते हैं, के बीच एक खाई को गढ़ देते हैं। यह खाई जितनी अधिक होगी उतना ही आप वास्तविक स्थिति से दूर होते जाएंगे।एसे व्यक्तियों को पता ही नहीं होता कि उन्हें करना क्या  है? उन्हें क्या दिखाना है? वे क्या है? तथा क्या कर सकते हैं? 

             आइये इसे एक कहानी से समझने का प्रयास करते हैं।रेल में एक भिखारी भीख मांग रहा था। वहां उसे एक धनी व्यक्ति मिला।अच्छे पैसे मिलेंगे यह सोचकर वह धनी व्यक्ति से भीख मांगने लगा।व्यक्ति ने कहा,'तुम  मांगते ही हो,या कभी कुछ देते भी हो?

   भिखारी: साहब मैं तो भिखारी हुं, किसी को क्या दे सकता हूं? व्यक्ति ने कहा: कि किसी को  जब कुछ दे नहीं सकते तो तुम्हें मांगने का भी कोई हक नहीं है।धनी व्यक्ति की बात भिखारी के मन में उतर गई।वह सोचने लगा कि मैं किसी को क्या दें सकता हूं? भिखारी लगातार इस पर सोचता रहा। दूसरे दिन उसकी नजर स्टेशन के पास के फूलों पर पड़ी। उसने कुछ फुल रख लिए।वह रेल में भीख मांगने पहुंचा।जब भी कोई उसे भीख देता तो उसके बदले में वह कुछ फूल दे देता।लोग भी फूल खुशी से रख लेते।वह ऐसा ही करने लगा। उसने महसूस किया कि अब उसे ज्यादा भीख मिलने लगी है।

          एक दिन रेल में वही धनी व्यक्ति मिला।वह तुरंत उसके पास गया और बोला,'आज मेरे पास आप को देने के लिए कुछ फूल है।आप मुझे भीख दीजिए, बदले में आपको फूल दूंगा।

           धनि व्यक्ति  ने कहा, वाह, आज तुम भी एक व्यापारी बन गए हो।धनि व्यक्ति ने पैसे दिए और फूल ले लिए। भिखारी फिर सोचने लगा। उसकी आंखें चमकने लगी, उसे लगा कि वह अपना जीवन बदल सकता है।वह रेल से उतरा और खुशी से ऊपर देखकर बोला,'मैं अब भिखारी नहीं हूं, मैं तो एक व्यापारी हूं। अगले दिन से भिखारी उस स्टेशन पर फिर कभी नहीं दिखा। एक वर्ष बाद इसी स्टेशन पर दो व्यक्ति यात्रा कर रहे थे। उनमें से एक ने दूसरे को प्रणाम किया और कहा,'क्या आप ने मुझे पहचाना? दूसरे ने मना कर दिया।

               भिखारी ने कहा महाशय में वही भिखारी हूं,जिसको आपने पहली मुलाकात में बताया कि मुझे जीवन में क्या करना चाहिए और दूसरी बार बताया कि मैं वास्तव में कौन हूं? नतीजा यह  कि आज मैं फूलों का बहुत बड़ा व्यापारी हूं।

               व्यक्ति के अंदर असीमित शक्ति तथा ऊर्जा का भंडार है ।यह अलग बात है कि वह उसके बारे में जानता ही नहीं और ना ही उसका प्रयोग करने की शक्ति को।व्यक्ति हर क्षण बदलाव की ओर अग्रसर है।हर एक व्यक्ति कुछ करने की छमता रखता है। आंतरिक विश्लेषण द्वारा स्वयं को जान सकते हैं। आत्म विश्लेषण मानव होने की पहचान है।

Comments

  1. बहुत सुंदर विचार

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  2. Topic is complex.There are many ifs & buts in life as there are in story . Kindly start reading & following Bhagwad Geeta. It is high time. Regards.

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  3. Fabulous article 👏👏👏

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  4. Thank you Everyone 🙏🙏🙏🙏😊

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