खुशीयों को पहचाने
खुशीयों को पहचाने
२० मार्च world happyness day मनाना शुरू कर दिया। दिल्ली सरकार ने हैप्पीनेस को एक विषय के रूप में पढ़ाने की कवायद शुरू कर दी(मार्च २०१९के आसपास की बात है)।सी.बी.एस.ई.(केन्द्रिय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड )बच्चों के कंधों पर से बोझ कम करने के प्रति गंभीर है।
'खुशी' मात्र बच्चों तक ही सीमित नहीं है यह मानव जाति की एक समस्या बनकर उभरा है। यू.एन.ओ.ने वर्ल्ड हैप्पीनेस इंडेक्स को तैयार करने के लिए निम्न मापदंडों को ध्यान में रखा-
१) सकल घरेलू उत्पाद जीडीपी
२)जनता को उपलब्ध सामाजिक तथा संस्थागत समर्थन
३)अनुमानित स्वास्थ ,पूर्ण आयु
४)सामाजिक आजादी
५)समाज में व्याप्त आपसी भरोसा उदारता
६)भ्रष्टाचार के बारे में उस देश के लोगों की राय
आज देश की सबसे बड़ी समस्याओं में से यह उभरी है कि स्वयं को खुश कैसे रखा जाए? जटिल होती समाज की कार्यप्रणाली से व्यक्ति के मस्तिष्क पर अत्यधिक दबाव आता जा रहा है।ऐसा नहीं है कि समस्याएं , परेशानियां आज किसी को परेशान नहीं करते वरन यह तो जीवन का एक पहलू है ।इससे हम भाग नहीं सकते ।पर फिर खुश रहना क्या है ?
सबसे पहले हम 'खुश रहना' को परिभाषित करते हैं जो चिंता में ना हो, तनाव में न हो, शारीरिक- मानसिक रोग से ग्रसित ना हो, सामान्यता वह व्यक्ति खुश है ।
यु.एन.ओ.के मापदंडों को देखें तो धन ,सामाजिक संबंध ,स्वास्थ्य ,समाज के प्रति उदारता तथा भ्रष्टाचार को मुख्य मानदंड बनाया है।
खुशी को बाहरी तथा सामाजिक मानदंडों जैसे u.n.o. ने निर्धारित किया है उसी से पाया जा सकता है। एक दृष्टिकोण से यह देखे तो यह आप दंड उचित है। परंतु प्रश्न यह उठता है कि क्या ऐसे व्यक्ति जिनके पास घर नहीं है पैसा नहीं है।क्या वे खुश नहीं है ?यदि वे खुश है तो उनके खुश रहने के क्या कारण है?क्या अपने गहराई से सोचा है?
ख़ुश होने के कारणों को हम दो भागों में विभाजित कर सकते हैं-
१)बाह्य कारण-पैसा, स्वास्थ्य, सामाजिक संबंध आदि आ सकते हैं ।
२)आंतरिक कारण -यह हमारे व्यक्तित्व के कारण है जो हमें संस्कारों तथा पर्यावरण के रूप में मिलते हैं। जैसे- ईमानदारी, संतोष ,उदारता आदि ।यह वे शक्तियां है जो हमें खुश रहने के लिए आवश्यक है ।इसके अलावा स्वयं से बहुत ज्यादा प्रेम आपको खुश रखता है ।स्वयं को तुच्छ,असहाय, घृणित समझना आपको आपकी कमियों अपूर्णता को प्रदर्शित करता है। जीवन में स्थिति में कोई भी व्यक्ति पूर्ण नहीं है ।सभी में कोई ना कोई कमी है ।जब व्यक्ति इस बात को स्वीकार कर लेता है तो खुश रहने की अवस्था की ओर अग्रसर होता है।
मन, अवचेतन, बुद्धि ,मस्तिष्क यह सभी चित्त्त के अंदर समाहित है। चित्त कई जन्मो के कर्मों से प्राप्त स्मृति पुंज है जिसे हम इस जन्म में प्राप्त करते हैं। मन इस चित पर उठने वाली तरंग का नाम है। आप इसे इस प्रकार समझ सकते हैं कि आप किसी वस्तु जैसे मिठाई खा कर खुश हुए। यह खुशी क्षणिक है,पर इसका अनुभव आपके चित्त पर जमा हो गया जैसे ही मिठाई को पुनः देखेंगे आप के चित्त पर एक तरंग उठेगी। उसे खाने के लिए मचलती है ।यह चंचलता या तरंग ही मन है। आपको न मिलने पर आप उस मिठाई के अनुभव से प्राप्त खुशी को किस रूप में लेते हैं ।उसे न पाने की पीड़ा को यदि आप तुरंत भूल जाते हैं तो आपने अपने खुश रहने का सूत्र ढूंढ लिया है। यदि इस पीड़ा को कई दिनों तक अनुभव करते रहने से आपने स्थाई दुखी होने के कारण ढुंढ लिया है।
ऐसे ही जीवन अनगिनत भोगों की चाह है जो मन रूपी तरंग के रूप में हमारे चित पर आत- जाता रहता है ।कुछ गहरा प्रभाव संस्कार के रूप में जमा हो जाता है ।यह जितना मजबूत होगा उसका प्रभाव उतना ही अधिक होता है ।इस पीड़ा या चाह को हम दूसरे जन्म तक भी प्रवाह कर ले जाते हैं ।यही उस जन्म का अवचेतन मन बन जाता है ।जो समय-समय पर उनकी पीड़ा, भोगों की चाह को विचारो के रूप में प्रकट करता है ।कमियां, गलतियां, इच्छाएं ,पाने की कामनाएं मानव की विशेषता है ।परंतु मिलने तथा ना मिलने से प्राप्त सुख तथा दुख की पीड़ा को वह किस प्रकार अनुभव करते हैैं ।इसमें व्यक्ति जितना ज्यादा आसक्ती का अनुभव नहीं करता वह उतना हीं 'खुश होने 'के करीब है।

Very beautifully written!❤️👌🏻
ReplyDeleteVery nice....
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